नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट मे आज हम दायित्व (Liabilities) तथा इसके प्रकारों के बारे मे चर्चा करेगे। दोस्तों जब भी हम Accounting की बात करते हैं। तो उसमे एक शब्द दायित्व (Liabilities) तो आता ही है। और खास कर Balance Sheet तैयार करते समय। Balance Sheet मे दो पक्ष होते हैं। Liabilities और Assets. जिसमे से आज हम Liabilities के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
दोस्तों इससे पहले पोस्ट मे हमने सम्पति तथा इसके प्रकारों के बारे में जानकारी प्राप्त की थी। दोस्तों यदि आप सम्पत्ति (Assets) से सम्बंधित पोस्ट देखना चाहते हैं। तो आप यहाँ जरूर क्लिक करें।
तो चलिए दोस्तों आज हम दायित्व तथा इसके प्रकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
दायित्व किसे कहते हैं। दायित्व के प्रकार। |
दायित्व (Liabilities) क्या है।
वह धन जो व्यवसाय को अन्य पक्षों या अपने स्वामियों के प्रति चुकाना है। दायित्व कहलाता है।
इसे साधारण भाषा में समझे तो व्यवसाय में बहुत बार अत्यधिक धन की आवश्यकता होती है। इसलिए व्यवसायी अन्य व्यक्तियों से ऋण लेता है। या कभी – कभी व्यवसायी उधार माल क्रय करता है। तो ऐसे मे ईन व्यक्तियों या लेनदारों को चुकाने वाली कुल धन राशि को ही दायित्व (Liabilities) कहते हैं।
दायित्व (Liabilities) को निम्न भागों में बांटा जा सकता है।
(अ) स्थायी या गैर-चालू या दीर्घकालीन दायित्व (Fixed or Non-current or Long term Liabilities)
(ब) चालू दायित्व (Current Liabilities)
(स) संयोगिक दायित्व (Contingent Liabilities)
(अ) स्थायी या गैर-चालू या दीर्घकालीन दायित्व (Fixed or Non-current or Long term Liabilities)
स्थायी दायित्वो से आशय ऐसे दायित्वों से होता है। जिनका भुगतान एक लम्बी अवधि के पश्चात किया जाता है। समान्य: य़ह अवधि एक वर्ष से अधिक की होती है।
जैसे :- दीर्घकालिक ऋण, ऋण पत्र आदि।
(ब) चालू दायित्व (Current Liabilities)
चालू दायित्वो से आशय ऐसे दायित्वों से होता है। जिनका भुगतान निम्न अवधि मे किया जाता है। समान्य: य़ह अवधि एक वर्ष से कम की होती है।
जैसे :- बैंक ओवरड्राफ़्ट, समस्त लेनदार, देय बिल आदि।
(स) संयोगिक दायित्व (Contingent Liabilities)
संयोगिक दायित्वों से आशय ऐसे दायित्वों से होता है। जो व्यवसाय संयोग वश या किसी घटना के घटित होने के कारण उत्पन्न होते हैं। संयोगिक दायित्व को संयोजित दायित्व, संभाव्य दायित्व या आकस्मिक दायित्व भी कहते हैं।
जैसे:- न्यायालय में किसी विवाद पर दिया जाने वाला शुल्क, भुनाने गए बिल, क्षतिपूर्ति दावे, विलम्ब शुल्क आदि।
दायित्व (Liabilities) को आंतरिक और बाह्य रूप मे भी बांटा जा सकता है।
(अ) आंतरिक दायित्व (Internal Liabilities)
जब व्यवसाय का स्वामी व्यवसाय में पूँजी लगाता है। तो व्यवसाय के स्वामी के प्रति दी जाने वाली राशि को आंतरिक दायित्व कहते हैं।
(ब) बाह्य दायित्व (External Liabilities)
जब व्यवसाय में बाहरी व्यक्तियों से ऋण लिया जाता है। तो ईन व्यक्तियों को चुकायी जाने वाली राशि को बाह्य दायित्व कहते हैं।
बाह्य दायित्व मे निम्न दायित्वों को शामिल किया जाता है।
(i) माल के लिए लेनदार (Creditor for Goods)
व्यवसाय में जिन व्यक्तियों से उधार माल खरीदा जाता है। उन्हें लेनदार कहते हैं। ओर ईन लेनदारों को बाह्य दायित्व कहते हैं।
(ii) ऋण के लिए लेनदार (Creditor for Loan)
व्यवसाय मे जिन व्यक्तियों, कंपनियो या संस्थाओ से ऋण लिया जाता है। उन्हें ऋण के लिए लेनदार कहते हैं। और ईन लेनदारों को भी बाह्य दायित्व मे शामिल किया जाता है।
(iii) व्ययों के लिए लेनदार (Creditors for Expenses)
व्यवसाय मे कुछ खर्च ऐसे होते हैं। जिनका भुगतान चालू वर्ष के अंत तक भी नहीं किया जाता है। तो ऐसे खर्चों को व्ययों के लिए लेनदार कहते हैं।
जैसे – अदत्त किराया, अदत्त ब्याज, अदत्त वेतन आदि।
नमस्कार दोस्तों आशा करता हु। की आप को मेरा पोस्ट बहुत पसंद आया होगा। जिसमें मेने आप को बहुत ही आसान शब्दों में समझाया कि दायित्व (Liabilities) क्या है। तथा य़ह कितने प्रकार के होते हैं। दोस्तों यदि आप को पोस्ट से सम्बंधित किसी बात को समझने में परेशानी होती है। तो आप मुझे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकते हैं। और दोस्तों यदि आप इसी तरह Accounting से सबंधित पोस्ट निरंतर प्राप्त करना चाहते हैं। तो प्लीज़ Notification Bell पर जरूर click करे।
धन्यवाद……
हेलो दोस्तो, मेरा नाम विकास जरीवाला है। और मै एक प्रोफेशनल अकाउंटेंट हु। दोस्तो इस ब्लॉग पर मे Accounting, Tally Prime, Technology और Commerce Stream से जुड़े लेख लिखता हू।